Thursday, May 7, 2009

मेरी पहली पोस्ट: वरिष्ठ चिठेरों के नाम...

मेरे मन में हमेशा कुछ अनूठा करने की चाह रही है। ताजा हवाएँ की नीव ही डाली थी मैने कुछ ताजगी पैदा करने के लिए। लेकिन राह आसान नहीं थी। अयोध्यावासी जमुना प्रसाद उपाध्याय की ये पम्क्तियाँ मेरे सामने खड़ी चुनौती को बयान करती हैं:

जुगनू भी मेरे घर में चमकने नहीं देते,

कुछ लोग अन्धेरों को सिमटने नहीं देते।

हम हैं कि नयी पौध लगाने पे तुले हैं;

बरगद हैं कि पौधों को पनपने नहीं देते॥

अब मुझे इण्टरनेट पर जो माध्यम मिला है उसने मेरे उत्साह को बढ़ा दिया है। इसका परिचय मिलने के बाद मैने अपनी जमात के विद्यार्थियों और ताजे कलमकारों को इस विधा से जोड़ने का मन बनाया और ‘हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया’ के अनुभवी दिग्गजों को प्रयाग बुलाकर सबसे रूबरु कराने का कार्यक्रम तय कर दिया। सत्यार्थमित्र पर इस कार्यक्रम की जानकारी आप को मिल ही चुकी है। फिर भी आज अपनी पहली पोस्ट में मैं सिद्धार्थ जी से अनुमति प्राप्त करके वह जानकारी हू-बहू यहाँ पेश कर रहा हूँ।

 

ब्लॉगिंग के दिग्गज प्रयाग में पढ़ाने आ रहे हैं...

हिन्दी पट्टी में तीर्थराज प्रयाग की पुण्यभूमि पठन-पाठन और बौद्धिक चर्या के लिए भी अत्यधिक उर्वर और फलदायक रही है। यहाँ ‘पूरब के ऑक्सफोर्ड’ इलाहाबाद विश्वविद्यालय और अन्य आनुषंगिक संस्थानों से निकलने वाली प्रतिभाएं न सिर्फ भारत अपितु पूरी दुनिया में सफलता के प्रतिमान स्थापित कर चुकी हैं। देश-प्रदेश को अनेक साहित्यकार, राजनेता, योग्य प्रशासक, राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री दे चुके इस पौराणिक शहर की पहचान बौद्धिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कोटि की है।

इस शहर की आबो-हवा ही ऐसी है कि इसमें साँस लेते ही मैंने दस साल के ब्रेक के बाद अपनी किताबों की धूल साफ कर ली, कलम में रोशनाई भर ली, और सरकारी नौकरी के कामकाज से अलग कुछ लिखना-पढ़ना शुरू कर दिया। जल्द ही कम्प्यूटर आया, फिर इण्टरनेट लगा और देखते-देखते ब्लॉगिंग शुरू हो गयी। राजकीय कोषागार का लेखा-जोखा रखने वाला एक साधारण मुलाजिम ‘ब्लॉगर’ बन गया। ...लेकिन ठहराव इसके बाद भी नहीं है।

अभी और आगे बढ़ना है। यहाँ प्रयाग में कदाचित्‌‌‌ एक अदृश्य शक्ति है जो लगातार रचनाशीलता और बौद्धिक उन्नयन की नयी भूमि तलाशने को प्रेरित करती है। गंगा-यमुना के प्रत्यक्ष संगम के बीच अदृश्य सरस्वती युगों-युगों से शायद इसी शक्ति को परिलक्षित करती रही है।

यह जानी पहचानी भूमिका मैं यहाँ इसलिए दे रहा हूँ कि इलाहाबाद में फिर से एक नया काम होने जा रहा है। वह है ब्लॉगिंग की पढ़ाई। जी हाँ, कुछ होनहार व जिज्ञासु विद्यार्थियों और कलम के सिपाहियों को तराशने और भविष्य के नामी ब्लॉगर बनाने के लिए इस माउसजीवी दुनिया के कुछ बड़े महारथी एक दिन की क्लास लेने आ रहे हैं।

दुनिया में ब्लॉगिंग का जो भी सामान्य या विशिष्ट स्वरूप हो भारत में हिन्दी ब्लॉगिंग निश्चित रूप से कुछ अलग किस्म की है। इस देश में लिखने पढ़ने और बौद्धिक जुगाली करने के अनेक स्तर हैं। गाँव देहात की बैठकबाजी के अड्डे हों, कस्बाई चौराहों की चाय-बैठकी हो, बड़े शहरों का अखबारी क्लब हो, शिक्षण संस्थाओं का सेमिनार हाल हो या महानगरों का कॉफी हाउस हो, मीडिया सेन्टर हो या संसद का गलियारा हो। प्रत्येक जगह बहस चलाने वाले अपनी एक अलग विशिष्ट शैली के साथ मौजूद रहते हैं। लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग एक ऐसा अनूठा माध्यम है जिसमें ऊपर गिनाये गये सभी स्तर तो समाहित होते दिखते ही हैं, यहाँ कुछ अलग किस्म की छवियाँ भी उभरती हैं जो अन्यत्र मिलनीं असम्भव हैं।

इसी अनूठे माध्यम के अलग-अलग आयामों पर चर्चा करने के लिए देश के सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित चिठ्ठाकारों में से चार विभूतियाँ एक साथ एक छत के नीचे जिज्ञासु कलमकारों को ब्लॉगिंग के गुर बताएंगी। कार्यक्रम की रूपरेखा निम्नवत है:

तिथि व समय

शुक्रवार, ०८ मई; सायं: ५:३० बजे से

स्थान

निराला सभागार, दृ्श्यकला विभाग-इलाहाबाद विश्वविद्यालय

आयोजक

ताजा हवाएं-इमरान प्रतापगढ़ी

मुख्य वक्ता

प्रतिनिधि ब्लॉग

वार्ता का विषय

ज्ञानदत्त पाण्डेय

मानसिक हलचल

ब्लॉगिंग का नियमित प्रबन्धन

अनूप शुक्ल

फुरसतिया, चिठ्ठा चर्चा

ब्लॉगिंग की दुनिया में हिन्दी चिठ्ठाकारी की यात्रा

डॉ.अरविन्द मिश्रा

साई ब्लॉग, क्वचिदन्यतोअपि

साइंस ब्लॉगिंग की दुनिया

डॉ.कविता वाचक्नवी

स्त्री विमर्श, हिन्दी-भारत

हिन्दी कम्प्यूटिंग, अन्तर्जाल में हिन्दी अनुप्रयोग

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

सत्यार्थमित्र

विषय प्रवर्तन और प्रश्नोत्तर-काल

कार्यक्रम में आमन्त्रित श्रोताओं की जिज्ञासा को शान्त करने के बाद उनसे यह अपेक्षा की जाएगी कि वे रचनाशीलता के इस रोचक और अनन्त सम्भावनाओं वाले माध्यम को अपनाकर इलाहाबाद से उठने वाली इस ज्योति को दूर-दूर तक ले जाएं और पूरी दुनिया को हिन्दी चिठ्ठाकारी के प्रकाश से रौशन करें।

विश्वविद्यालय के फोटो पत्रकारिता एवं दृश्य संचार विभाग के होनहार छात्र और वर्तमान में बड़े कवि सम्मेलनों और मुशायरों के लोकप्रिय और चर्चित हस्ताक्षर इमरान प्रतापगढ़ी ने जब अपनी तरह के इस पहले कार्यक्रम का प्रस्ताव मेरे समक्ष रखा तो मुझे इसे सहर्ष स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं हुई। मैने इस उत्साही नौजवान द्वारा आयोजित एक अनूठा कार्यक्रम पहले भी देखा था। मैं आश्वस्त था कि प्रयाग की परम्परा के अनुसार एक उत्कृष्ट आयोजन करने में इमरान जरूर सफल होंगे। (सिद्धार्थ)

इमरान ‘प्रतापगढ़ी’